ताम्रकार समाज तथ्य - सच्चाई

दुर्ग छत्तीसगढ़ में आदिकाल से हैहयवंशी ताम्रकार (तमेर) समाज के लोग निवास करने आये है, राजाओं के युग में इनका मुख्य कार्य पीतल और तांबा के मिश्रण से घने कांसे बर्तन बनाने का रहा है | समय बदला,हमारे व्यवसाय में भी परिवर्तन आने लगा |

हम राजाओं के दरबार से निकलकर आम जनता के उपयोग में आने वाले बर्तनों जैसे लोटा,गिलास,गुंडी,इत्यादि बनाकर अपना आजिविका चलाने लगे |मंदिरों के शीर्ष गुबंदों पर लगे कलश भी विभिन्न धर्म प्रेमियों के इच्छा अनुरूप हमारे समाज की ही निशानिया है |

आज हमारा पुरखौती व्यवसाय मशीनों की गडगडाहट और सस्ते स्टील की चमक के सामने घुटने टेकते हुए लगभग एक कोने में सिमट गया है | और सिर्फ शादी ब्याह पूजा पाठ के लेंन देंन में ही अपनी उपस्थित दर्ज करवा पाता है | इन्ही कारणों के चलते समाज के अधिकतर परिवार अपने बच्चो को अच्छी उच्च शिक्षा दिलाने के पक्षधर हो गए | गिनती के ही परिवार आज भी अपनी पुरखौती व्यवसाय को जिन्दा रखने के लिए मेहनत मशक्कत कर रहे है |

खैर,मैं आज से करीब १००-१५० वर्ष पूर्ब की सच्ची घटना आपको बता रहा हूँ जिसका प्रमाण आप स्वंय जान जायेंगे | एक दिन हमारे पूर्वज अपने पुरखौती कार्य कर रहे थे तब कुछ देर बाद उन्होंने देखा कि उनके ठीक सामने जमीन पर एक नाग (सांप), अपना बड़ा सा फन काढ़े,अपनीं जीभ निकाल कर बैठा हुआ है | यह देख कर हमारे पूर्वज पहले तो घबराकर सहमे फिर कुछ हिम्मत करते हुए उसे भगाने का प्रयास करने लगे ,मगर वह नाग टस से मस हुये बिना पूर्ववत बैठा रहा |

यह देख थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए उस नाग को ध्यान से देखा और पाया कि उस नाग के जीभ में एक कांटा चुभा हुआ है, और वह नाग बिना हिले डुले एक टक हमारे पूर्वज कि ओर निहार रहा है | थोड़ी देर में हमारे (पूर्वज) के अन्य सदस्य भी इकठ्ठे हो गए,फिर उस नाग के आगे पूजा पाठ कर सभी नतमस्तक हो गए |

तत्पश्चात हमारे मुखिया पूर्वज हाथ में गमछा (कपडा) लपेटकर उस नाग को हाथ से पकड़कर उसके जीभ में चुभे कांटे को निकाला | और उनके सामने दूध कि कटोरी रख दिया, नाग दूध पीकर अपने शरीर को पूंछ के ऊपर खड़ा होकर आजू बाजु डोलने लगा जैसे ख़ुशी से झुमने लगा हो |

फिर सबने देखा कि नाग खड़े खड़े, धीरे धीरे भगवान का रूप दिखाते हुए हाथ उठाकर बोले – आज से तुम हैहयवंशियो को सर्प नही काटेगा और यदि क्रोध वंश डंस दिया तो उसे उसका विष नही लगेगा ,न ही संर्पदंश से किसी भी हैहयवंशी कि मुत्यु होगी | तुमने जो हिम्मतकर मुझे कष्ट मुक्त किया है इस कार्य से खुश होकर मै तुम्हे आर्शीवाद देता हु कहते हुए अंतर ध्यान हो गये | तब से आज तक मैंने किसी भी हैहयवंशियो को संर्पदंश से मुत्यु बहुत दूर कि बात है, किसी को सर्प काटने कि घटना नही सुना है |

मेरे पिता जी स्व श्री शंकर लाल ताम्रकार के बड़े भाई स्व श्री मोहन लाल ताम्रकार जी अंग्रजो के शासन काल से देश की आजादी के बाद जीवित रहते तक सर्पदंश का निशुल्क इलाज करते रहे | कंदी भी सर्प आने पर उनको पकड़ने हेतु विभिन्न समाज के लोग उन्हें बुलाकर ले जाते और ये उन्हें जिन्दा पकड़कर अपने घर लाकर उनकी सेवा करने और नाग पंचमी के दिन बस्ती से दूर खेतो जंगलो में छोड़ देते थे |

मै प्रायमरी में पढते हुए यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा और पाले हुए सर्पो की भोजन के लिए मोहल्ले के कई घरो में चूहा पकडे के पिंजरा रखकर व्यवस्था भी मैंने किया | मुझे अच्छी तरह याद है उनके दोनों हथेलियो,उंगलियों में अनगिनत सर्पो के काटने के निशान थे |

स्व. श्री मोहन लाल जी के इस समाज सेवा कार्य से उन्हें अंग्रजो ने सम्मानित किया था और विभिन्न समाज के लोग उन्हें बड़े आदर से सांप वाले कहकर संबोधित करते थे | सांप वाले के एक मात्र पुत्र स्व. श्री केदारनाथ ताम्रकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए जिनका नाम दुर्ग विभिन्न स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ प्रमुखता से आज भी लिया जाता है | इस घटना को मैं आज कहानी कहते हुए आपको बताया,आदरणीय ,मैंने किसी भी ताम्रकार विशेषकर हैहयवंशी ताम्रकार को सर्प काटने या सर्पदंश के कारण मरने कि बात नही सुना है ,आप भी अपने आसपास की घटनाओं को विचारते हुए सोचिये मुझे विश्वास है कि हैहयवंशियो को सर्पदंश नही होता |

अंत में मेरे पूर्वज की एक बहुत पुरानी तस्वीर है उसे आप भी देखिये तब मेरी बातो पर आपको स्वत यकीन हो जावेगा |

पल्ले ताम्रकार

तमेर पारा, दुर्ग, छत्तीसगढ

मो.न. - +91-9827113386